यौम-ए-अलस्त की बात है इक़रार सभी जब कर चुके थे अह्द भी पक्के हो चुके थे फिर उन्ही तौहीद लम्हों में रूह मेरी ने सहमे सहमे झिझकते लहजे ये झुक के अपने करीम रब से कहा कि मालिक नवाज़ मुझ को तवील तारीक कठिन सफ़र में हयात जिस का है नाम रक्खा इक ऐसा अनमोल प्यारा रिश्ता दोस्ती है नाम जिस का ये सुन के हर-सू सुकूत था छाया जुमूद तारी था हर एक शय पर हैराँ मलाइक ये सोचते थे ये रूह सज़ा की है मुस्तहिक़ अब रहीम रब को जो प्यार आया तो मेरी जानिब इक रहमतों का हिसार आया ये फ़रमान मलाइक को हुआ यकायक वफ़ा की मिट्टी को गूँध रखो फिर मिलाओ चाहत का ऊद-ओ-अम्बर बे-रियाई उन्डेलो इस में करो बे-लौस वफ़ाओं का अरक़ शामिल यक-जान हों जब सभी ये अज्ज़ा तो हर रूह-ए-इंसाँ में कर दो शामिल ये बुनियाद थी रिश्ता-ए-दोस्ती की रिश्तों के इस हुजूम में मोना मेरी ख़ुश-नसीबी कि करीम रब ने दोस्ती के कितने मेहरबाँ सितारे मेरे आसमान-ए-ज़िंदगी पे ज़ौ-फ़िशाँ किए हैं तो ऐ मेह्र-ओ-वफ़ा की मिट्टी में गुँधे मेरे दोस्तो ये नज़्म मेरी तुम्हारे नाम कि मोहब्बतों ने तुम्हारी मुझे माला-माल किया और इस दोस्ती ने मेरी हस्ती को बे-मिसाल किया