साथी मेरे आओ कुछ और देर मेरा साथ निभाओ साहिल-ए-ज़िंदगी पर चंद क़दम और मेरे संग मिलाओ हिज्र की तेज़ सुर्ख़ आँधी चल पड़ी है और मेरी इन यतीम ओ बेकस तन्हाइयों में बेवा माँ की तरह बैन करती पागल हवाएँ बोलती हैं मैं साकित-ओ-जामिद खड़ी ख़ामोश लब भींचे तुझे देखती हूँ और सोचती हूँ काश ऐसा हो तू पढ़ सके मेरी सोच को हैं बचीं अब फ़क़त चंद मुस्तआ'र साँसें मेरी नज़र में भी हैं कुछ अजब सी धुंदलाहटें ज़र्ब पड़ चुकी है नक़्क़ारा-ए-कूच पर इज़राईल ने जकड़ रखी हैं मेरी ये बाँहें मैं हद से ज़ियादा मजबूर हूँ तुम तो समझ जाओ इन मजबूरियों को चलो इस बहते वक़्त को अमर बनाओ साथ मेरे चंद और साअ'तें बिताओ आज फिर संग मेरे तारे गिनवाओ है अब मेरा सफ़र मजाज़ से हक़ीक़ी की जानिब एक अलविदाई बोसा मेरे माथे पर सब्त करो मुझे अपनी इस मोहब्बत से आज़ाद करो मेरी मुट्ठियों में हैं बहुत सी यादों के जुगनू कई रंग-दार तितलियों के रंग मुझे इन तमाम यादों से आज़ाद करो एक बार मुट्ठी खोल कर मुझे उड़ जाने दो साथी मेरे बस इतना ही तुम्हारा मेरा साथ था चलो अब तुम वापस लौट जाओ ढलते सूरज की नारंजी रौशनी में मैं भी लौट जाती हूँ उफ़ुक़ के उस पार दोबारा मिलने के लिए