तुझे भी याद आता होगा शायद था मेरी रूह से इक दिल का रिश्ता वो रिश्ता जिस के आगे सारे रिश्ते लगा करते हैं झूटे और फीके वही रिश्ता है मेरे साथ अब तक मिरी रग रग में हर दम दौड़ता है मिरे अंदर जो ख़ाली-पन है छाया उसे पुर करने की कोशिश में हर पल मिरी ख़ामोशियों को तोलता है मिरी आसूदगी-ए-जाँ की ख़ातिर बहुत मीठे सुरों में बोलता है मगर फिर भी मैं कैसे भूल जाऊँ ये रिश्ता मेरी बर्बादी की जड़ है यही वो रिश्ता है जो तोड़ कर तू मिरी दुनिया से कब का जा चुका है