अगरचे ये सच है कई बार दिल मेरा बेहद दुखा है तुम्हारी वज्ह से कई बार पलकों पे आए हैं आँसू तुम्हारी वज्ह से कई बार सहनी पड़ी सख़्त लहजे की तेज़ी ओ तुंदी तुम्हारी वज्ह से कई मर्तबा ना-मुनासिब रवय्या भी झेला है मैं ने तुम्हारी वज्ह से कई बार बे-बात ग़ुस्से की ज़द पर भी आना पड़ा है तुम्हारी वज्ह से कई मर्तबा इज़्ज़त-ए-नफ़्स को ताक़ पर रख के सॉरी भी कहना पड़ा है तुम्हारी वज्ह से तो ये भी तो सच है जो इस पहले सच से कहीं मो'तबर है बड़ा दिल-नशीं है कि अक्सर मिला है मिरे ग़म को मरहम तुम्हारी वज्ह से कई बार मैं रोते रोते हँसी हूँ तुम्हारी वज्ह से मिरे आँसुओं को मयस्सर हुआ एक बर-वक़्त कंधा तुम्हारी वज्ह से कई बार अफ़्सुर्दगी के समुंदर में गिरने से पहले बचाई गई हूँ तुम्हारी वज्ह से हुनर ज़ब्त-ए-गिर्या का दर आया मुझ में तुम्हारी वज्ह से हुए वा शुऊ'र-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त के दर तुम्हारी वज्ह से उजागर हुआ मुझ में एहसास-ए-हस्ती तुम्हारी वज्ह से हुआ मुन्कशिफ़ लफ़्ज़-ए-इख़्लास मुझ पे तुम्हारी वज्ह से हुआ फ़हम-ओ-इदराक सच्ची ख़ुशी का तुम्हारी वज्ह से तुम्हारी वज्ह से ही मसरूर-ओ-शादाब रहने लगी हूँ अगरचे मैं अंदर से टूटी हुई हूँ मगर फिर भी अब तक जो बिखरी नहीं हूँ तुम्हारी वज्ह से ये सच है मिरे दोस्त मैं जी रही हूँ तुम्हारी वज्ह से