मुझे मा'लूम है मुझ से मेरे इस रोग से मेरे सभी अपने परेशाँ हैं मेरी तीमार-दारी से मेरी बीवी मेरे बच्चे बहुत तंग आ चुके हैं अब ये बिल्कुल साफ़ लिक्खा है सभी चेहरों पे के वो अब बहुत बे-रब्त हैं मुझ से मगर ये फ़र्ज़-ए-आख़िर है निभाना है ज़माना है दिखाना है सभी तय्यारियाँ लग-भग मुकम्मल हो चुकी होंगी दवाओं के सभी ख़र्चे के मेरे फाइनल बिल पर भी डिस्कस हो चुकी होगी बड़े बेटे ने छोटे को कफ़न की ज़िम्मेदारी सौंप दी होगी कहाँ से कैसे लाना है वो ख़ुद मसरूफ़ होगा बाद मरने के मेरे जो काम होने हैं उन्हें अंजाम देने में जगह भी क़ब्र की लग-भग मुक़र्रर हो गई होगी फ़क़त अब मुंतज़िर हैं सब कि किस लम्हा क़ज़ा आए कटे ज़ंजीर जिस से मैं ने सब को बाँध रक्खा है