ऐसी क़ुव्वत जो सर्फ़ नहीं होती है अज़िय्यत बन जाती है मेरे दिल में कितनी मोहब्बत थी जिस को ज़माने की बे-मेहरी और सर्द तबीअ'त ने इज़हार में आने न दिया आख़िर मैं ने सारा दर्द समेटा और तेरी आँखों पर वार दिया दुनिया मेरे लिए तेरी सूरत में पैमाना हुस्न-ओ-ख़ैर बनी यूँ तो मोहब्बत फ़र्द से फ़र्द को होती है लेकिन तुझ से मेरी मोहब्बत वो नुक़्ता है जिस के चारों तरफ़ आफ़ाक़ की गर्दिश होती है