गर्द से अटी हुई ख़ून से भरी हुई ज़ख़्म-ख़ुर्दा और शिकस्ता-रूह को अपने बस्ते में छुपाए कब तलक तुम रख सकोगे ख़्वाब-आवर गोलियों से ताक़त-ए-रफ़्तार ले कर होश से आँखें बचा कर कब तलक चलते रहोगे एक दिन तो मोड़ ऐसा आएगा जब अपने बस्ते में छुपी ये ना-मुकम्मल रूह ख़ून अपना वजूद तुम से वापस माँग लेगी उस घड़ी तुम क्या करोगे किस तरह ढूँड के लाओगे तुम रूह का असली वजूद