बिलाल 'असवद' कौन सा साज़ है जो कानों में सातों सुर दहका सकता है कौन सा मंज़र आँखों अंदर सत-रंगी सुलगा सकता है क्या कोई दरिया ऐसा भी है जिस के साथ मैं बह कर सात के सात समुंदर पार हो जाएँ क्या कोई लम्हा ऐसा भी है जिस का पूरा दुख जी लो तो सात जनम स्वीकार हो जाएँ किस हैरत को ओढ़े एक अजूबा देखें और सातों को साथ में पाएँ इस धरती के किस कोने पर जा कर सात ज़मीनें ढूँडें और उन सब की मिट्टी अपने हाथ में पाएँ किस तारे पर सीढ़ी रख कर अपने रब का मिम्बर देखें और फिर इन ग़ैबी आँखों से उस के सातों अम्बर देखें