छोटे छोटे त्यौहारों की कैसी ख़ुशियाँ थीं हम फुलझड़ियाँ ले कर सहन में भागे फिरते थे शब-ए-बरात पे मैं ने भी माँगी थी एक दुआ उस के होंटों पर भी कितने हर्फ़ सुनहरे थे गर्मी की तपती दो-पहरें और पीपल का पेड़ मेरी दुखती आँखों में सुख चैन उतरते थे इक जैसी बे मक़्सद सोचें इक जैसे हंगाम उम्र के इक हिस्से में 'फ़रहत' हम भी लड़के थे