आँखों ने मुझे धोका दिया तो मैं ने उन में बंजर मौसमों की सलाईयाँ फेर दीं लफ़्ज़ों ने मुझे धोका दिया तो मैं ने ज़बान को चुप की क़ब्र में उतार दिया ख़यालों ने मुझे धोका दिया मगर मैं ने उन्हें माफ़ कर दिया ये सोच कर कि अगर सब से एक जैसा सुलूक करता रहा तो मेरे साथ कौन रह जाएगा यहीं मैं ने ज़िंदगी की सब से बड़ी ग़लती की ख़याल मुझे शाएरी से दुनिया की तरफ़ ले गए उन्हों ने मेरे पेट पर भूक बाँध दी और फिर एक रोटी के एवज़ मुझे क़त्ल करा दिया