देना पड़े कुछ ही हर्जाना सच ही लिखते जाना मत घबराना मत डर जाना सच ही लिखते जाना बातिल की मुँह-ज़ोर हवा से जो न कभी बुझ पाएँ वो शमएँ रौशन कर जाना सच ही लिखते जाना पल दो पल के ऐश की ख़ातिर क्या देना क्या झुकना आख़िर सब को है मर जाना सच ही लिखते जाना लौह-ए-जहाँ पर नाम तुम्हारा लिखा रहेगा यूँही 'जालिब' सच का दम भर जाना सच ही लिखते जाना