इन टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर चलना कितना दुश्वार था मेरे लिए तुम तो इस के आदी थे तब ही तो हमेशा आगे निकलते गए थे कोई एहसास कोई दर्द तुम्हारे पैरों की बेड़ी नहीं बन सका था सारे रास्ते सारी गलियाँ कूचे सब तुम्हारे जाने पहचाने थे अजनबी तो हम थे जो तुम्हारी उँगलियों को पकड़ कर चल रहे थे और तुम बीच राह में किनारा कर गए थे मेरी नाव को मंजधार में छोड़ कर तुम्हें ज़िंदगी का ज़्यादा मोह था