सफ़र By Nazm << काश टावर ऑफ़ साइलन्स् >> वो भी बस का कई घंटों लम्बा मुसाफ़िर थे ख़ामोश बिल्कुल सभी नींद में गुम थे शायद मैं तन्हा अकेला करूँ तो करूँ क्या कि लम्हा सदी था बिताए न बीते अचानक ही फिर ध्यान की सीढ़ियों से किसी की सजल याद उतरी थी जो ज़ीना ज़ीना सफ़र कट गया मेरा Share on: