हवा हमारे दालानों में रुक सी गई है तुम से इजाज़त ले कर मैदानों की ख़ुशबू फैला देगी मिरी किताबों और तुम्हारी पोशाकों में उस से पूछो कैसे हैं वो लोग जिन्हें पिछली बरसात में हम ने बे-घर देखा था और कैसी है वो बच्ची जिस ने हम दोनों को अपने मिट्टी के प्याले में दूध पिलाया था कैसे हैं सूरज-मुखी के नन्हे-मुन्ने बेटे जिन को हम ने प्यार किया था और वो सादा-लौह चरवाहे जिन से हम ने अपना रस्ता पूछा था कैसे हैं दरिया के गीत जिन्हें अधूरा छोड़ आए थे किस ने हम दोनों के ब'अद उन्हें गाया है कौन हमारे ब'अद वहाँ से गुज़रा जहाँ नवम्बर आ कर ठहर गया था और नवम्बर धूप में जैसे सय्याहों की वर्दी पहने हर मंज़र में फैल रहा था हमें बताओ तुम कैसी हो और कैसे हैं ज़िंदा रहने वाले ज़माने