झुकी झुकी सी नज़रें क्यों हैं उड़ी उड़ी सी रंगत क्यों है चुप चुप क्यों हैं ख़ौफ़ के मारे गुम-सुम का क्यों रूप हैं धारे ये घर तो हम सब का घर है खुला हुआ जिस घर का दर है शाहों का दरबार नहीं है पीरों की दरगाह नहीं है माँगें हम बे-रोक जो चाहें सब पर ये दरबार खुला है गोरे काले एक हैं सारे राजा प्रजा हाथ पसारे हम भी कह दें जो कहना है डरते क्यों हैं ये वो दर है जिस के आगे एक हैं सारे झूटे हैं सब और सहारे