स्याही कुदूरत की दिल से निकालो नज़र को मोहब्बत के साँचे में ढालो वतन के तअ'य्युन से बाला है मोमिन ज़माने का नज़्म-ए-गुलिस्ताँ सँभालो निगार-ए-चमन के तशख़्ख़ुस की ख़ातिर उख़ुव्वत सदाक़त को शेवा बना लो मोहब्बत का भूका है सारा ज़माना ज़माने को बढ़ कर गले से लगा लो किसी का सहारा सर-ए-राह बन कर अगर हो सके तो ये नेकी कमा लो नज़र आए कोई अगर दुख पराया न कतराओ उस दुख को अपना बना लो है ज़ुल्मत-कदा गोशा-ए-दिल भी जिस का चराग़-ए-मोहब्बत से उस को उजालो