ऐ दोस्त मिरे पास नहीं लाल-ओ-जवाहर तू देख कि किस दर्जा है सादा मिरी पोशाक लेकिन मुझे क़ुदरत ने अता की है फ़क़ीरी इस बात का शाहिद है मिरा दामन-ए-सद-चाक हर-चंद कि कम-माया हूँ दुनिया की नज़र में इक़्लीम-ए-सुख़न में है मिरी बैठी हुई धाक हर रंग-ए-ज़माना से हूँ इस उम्र में वाक़िफ़ रफ़्तार-ए-ज़माना है मिरी बस्ता-ए-फ़ितराक दुनिया को समझता हूँ मैं बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल झुकते हैं मिरी इज़्ज़त-ओ-ताज़ीम को अफ़्लाक हैं शम्स-ओ-क़मर मेरे ही फ़रमान के ताबे' हावी है ज़माने पे मिरी फ़ितरत-ए-बेबाक ला-रैब मैं सुल्तान हूँ क़िस्मत के जहाँ का हर-चंद कि क़िस्मत का फ़साना है अलमनाक बिजली की हरारत है मिरी मौज-ए-नफ़स में मैं फूँक के इक लम्हे में रख दूँ ख़स-ओ-ख़ाशाक बरताव ज़माने का मिरे साथ बुरा है मत पूछ कि क्यूँ आँख मिरी रहती है नमनाक मैं चाहूँ तो तक़दीर-ए-ज़माना को बदल दूँ चाहूँ तो बदल सकता हूँ मैं क़िस्मत-ए-लौलाक