'आज़ाद'! ज़रा देख तू ये आलम-ए-अर्ज़ंग मौसम के ये अंदाज़ बहारों के ये नैरंग ये हुस्न, ये तरतीब, ये तज़ईन ये आहंग दामान-ए-ख़िरद चाक है दामान-ए-नज़र तंग हर ज़र्रा है दामन में लिए तूर की दुनिया हर बात में इक बात है हर रंग में सौ रंग ऐ रूह-ए-बशर! तुझ से हैं दोनों मुतकल्लिम सब्ज़े की ख़मोशी है कि झरनों का है आहंग अब छोड़ भी अफ़्सुर्दगी अपनी दिल-ए-नादाँ अब फूल भी हो खिल के तू ऐ ग़ुंचा-ए-दिल-तंग हर शय से हुवैदा है झलक हुस्न-ए-अज़ल की ज़र्रा है कि तारा है शगूफ़ा है कि है संग सब अक्स तिरे अक्स हैं ऐ सूरत-ए-पिन्हाँ सब रंग तिरे रंग हैं ऐ हस्ती-ए-बे-रंग ऐ देखने वालो! ये ज़रा बात तो देखो पत्ते हैं शफ़क़-रंग तो पत्थर हैं समन-रंग सब कुछ ये बजा है मगर ऐ हुस्न-ए-गुरेज़ाँ ऐ तू कि तिरी चाल पे क़ुर्बां जमन ओ गंग इस राह में गर साथ तिरा हो न मयस्सर लिद्दर फ़क़त आवाज़ है गुल-मर्ग फ़क़त रंग