इस तरह आज फिर आबाद है वीराना-ए-दिल कि है लबरेज़ मय-ए-शौक़ से पैमाना-ए-दिल दिल-ए-बेताब में पिन्हाँ है हर अरमान-ए-नज़र चश्म-ए-मुश्ताक़ में है सुर्ख़ी-ए-अफ़्साना-ए-दिल आज शम्ओं से ये कह दो कि ख़बर-दार रहें आज बेदार है ख़ाकिस्तर-ए-परवाना-ए-दिल इस को है एक फ़क़त देखने वाला दरकार तूर से कम तो नहीं जल्वा-ए-जानाना-ए-दिल जाग भी ख़्वाब से ऐ मशरिक़ ओ मग़रिब के हकीम कि तिरे वास्ते लाया हूँ मैं नज़राना-ए-दिल ये ज़रा देख कि आए हैं कहाँ से दोनों दिल तिरी ख़ाक का दीवाना मैं दीवाना-ए-दिल शौक़ की राह में इक सख़्त मक़ाम आया है मिरा टूटा हुआ दिल ही मिरे काम आया है साक़ी-ए-जाँ तिरे मय-ख़ाने का इक रिंद-ए-हक़ीर मिस्ल-ए-बू तोड़ के हर क़ैद-ए-मक़ाम आया है अल्लाह अल्लाह तिरी बज़्म का ये आलम-ए-कैफ़ मेरे हाथों में छलकता हुआ जाम आया है तिरे नाम आज ज़माने के महकते हुए फूल 'ग़ालिब' ओ 'मीर' के गुलशन का सलाम आया है वो मिरी हसरत-ए-देरीना का शहबाज़-ए-जलील कितनी मुद्दत में बिल-आख़िर तह-ए-दाम आया है तुझ को भी दिल में बसाया है जो 'इक़बाल' के साथ तो कहीं जा के ये अंदाज़-ए-कलाम आया है क्यूँ तुझे ये अबदी नींद पसंद आई है ऐ कि हर लफ़्ज़ तिरा शान-ए-मसीहाई है साक़ी-ए-मय-कदा-ए-ज़ीस्त ज़रा आँख तो खोल तिरी तुर्बत पे सियह मस्त घटा छाई है जाग भी ख़्वाब से दिल-दादा-ए-गुलज़ार-ओ-चमन कि तिरे देस की बाग़ों पे बहार आई है जो तिरे घर में है आज उस चमनिस्ताँ को तो देख ज़र्रे ज़र्रे को जुनून-ए-चमन-आराई है 'हाथवे' का है मकाँ वो कि ''मक़ाम-ए-नौ'' है जो भी ख़ित्ता है वो इक पैकर-ए-ज़ेबाई है कुछ ख़बर भी है कि ऐवाँ की हसीं मौजों में जो तिरे दौर में थी अब भी वो रानाई है वो तिरा नग़्मा कि सीनों में तपाँ आज भी है अहल-ए-एहसास का सरमाया-ए-जाँ आज भी है रिंद हैं मशरिक़ ओ मग़रिब में उसी के मुश्ताक़ वो तिरा बादा-ए-कोहना कि जवाँ आज भी है आज भी काबा-ए-अरबाब-ए-नज़र है तिरी फ़िक्र विर्सा-ए-अहल-ए-जुनूँ तेरा बयाँ आज भी है आज से चार सदी क़ब्ल जो चमका था कभी तिरे नग़्मात में वो सोज़-ए-निहाँ आज भी है जिस में है बादा जुनूँ का भी मय-ए-होश के साथ तिरे हाथों में वही रत्ल-ए-गिराँ आज भी है तू ने तमसील के जादे पे दिखाया जो कभी वही मील और वही संग-ए-निशाँ आज भी है ज़ुल्मत-ए-दहर की रातों में सहर-बार है तू ज़ीस्त इक क़ाफ़िला है क़ाफ़िला-सालार है तू तू हर इक दौर में है दीदा-ए-बीना की तरह हर ज़माने में दिल-ए-ज़िंदा-ओ-बेदार है तू जिस की बातों में धड़कता है दिल-ए-अस्र-ए-रवाँ आज तमसील-ए-ज़माना का वो किरदार है तू क्यूँ न हो लौह ओ क़लम को तिरे उस्लूब पे नाज़ हसन-ए-गुफ़्तार है गंजीना-ए-अफ़्कार है तू बज़्म-ए-जानाँ हो तो अंदाज़ तिरा फूल की शाख़ ज़ुल्म के सामने शमशीर-ए-जिगर-दार है तो तू किसी मुल्क किसी दौर का फ़नकार नहीं बल्कि हर मुल्क का हर दौर का फ़नकार है तू