बे-किवाड़ दरवाज़े राह देखते होंगे ताक़ बे-चराग़ों के इक किरन उजाले की भीक माँगते होंगे क्यों झिजक गए राही क्यों ठिठुक गए राही ढूँडने किसे जाओ इंतिज़ार किस का हो रास्ते में कुछ साथी रह बदल भी जाते हैं फिर कभी न मिलने को कुछ बिछड़ भी जाते हैं क़ाफ़िला कभी ठहरा क़ाफ़िला कहाँ ठहरा राह क्यों करे खोटी किस का आसरा देखे चंद काँच के टुकड़े इक बिलोर की गोली नन्हे मुन्ने हाथों का जिन पे लम्स बाक़ी है ज़ाद-ए-राह काफ़ी है ख़ुश्क हो चुके गजरे किस गले में डालोगी भूली भटकी ख़ुश्बूओ किस की राह रोकोगी किस ने अश्क पोंछे हैं किस ने हाथ थामा है अपना रास्ता नापो बे-किवाड़ दरवाज़े राह देखते होंगे कल नई सहर होगी लाज से भरी कलियाँ कल भी मुस्कुराएँगी कल कोई नई गोरी अध-खिली नई कलियाँ हार में पिरोएगी