फिर उस के बा'द का अर्सा सुना अब तक यही है जब ज़मीं चक्की के पाटों की तरह घूमे मदार-ए-ज़ात की अतराफ़ में जब रक़्स करती घूम कर अपनी जगह पहुँचे तो दिन तकमील पाता है मगर मैं ऐसी कैफ़िय्यत में ज़िंदा हूँ जहाँ तकमीलियत की सारी तारीफ़ें ज़मानी गर्दिशों के सब तसव्वुर ख़ाम रहते हैं जहाँ शब की सियाही और दिन की रू-सियाही में हद-ए-फ़ासिल नहीं होती उलूम-ए-ज़ाहिरी मुझ को बताते हैं ब-ज़ाहिर गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर में एक दिन ऐसा भी आता है जो बाक़ी सब दिनों से कुछ तवालत खींच लेता है ज़वाल-ए-वक़्त से मजबूर हो कर एक दिन ऐसा सिमटता है कि वक़अत में किसी भी दिन का हम-सर हो नहीं सकता मगर मैं ने कहा नाँ मेरी दुनिया में ज़मानी गर्दिशों के सब तसव्वुर ख़ाम रहते हैं मिरी दुनिया का सब से मुख़्तसर दिन उस की क़ुर्बत का ज़माना है जो लौह-ए-जाँ पे लिक्खा है फिर उस के बा'द का अर्सा तवालत ही तवालत है