समुंदर जो ज़मीन के चारों तरफ़ फैला हुआ है एक ही है हम ने उसे मुख़्तलिफ़ नाम दे रखे हैं ज़माना भी एक ही है वो कहाँ बदलता है बदलते तो हम हैं माज़ी हम जो बदल गए मुस्तक़बिल हम जो बदलने वाले हैं और हाल हम जो हैं वक़्त एक ग़ैर मुनक़सिम लम्बी डोर है अज़ल अबद के दरमियान माज़ी हाल मुस्तक़बिल हमारे दिए हुए नाम हैं समुंदर की तरह क्या ख़ुदा नामों से तक़्सीम हो पाया है