अज़्म-ए-शाहीनी लिए इक नौजवाँ संजीव है अब मिरी उर्दू का सच्चा पासबाँ संजीव है रेख़्ता के हो तुम्हीं उस्ताद ग़ालिब आज भी हाँ मगर इस बाग़ का अब बाग़बाँ संजीव है जिस में लाखों हैं सितारे शाइ'री-ओ-नस्र के इस नई इक कहकशाँ का आसमाँ संजीव है ख़ूब-रू है ख़ूब-सीरत नर्म-गुफ़्तारी भी है बा-अदब तहज़ीब का सैल-ए-रवाँ संजीव है वो अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर अब तो कितने क़ाफ़िलों का कारवाँ संजीव है जिस के दिल में ज़ेहन में साँसों में है सारा अदब रेख़्ता जैसी हसीना की ज़बाँ संजीव है कल वफ़ा उर्दू से उस की सुर्ख़-रू हो जाएगी दास्तानों में छुपी इक दास्ताँ संजीव है जिस में शिरकत के लिए बे-ताब है सारा जहाँ जश्न-ए-उर्दू का भी मीर-ए-कारवाँ संजीव है भर रहा है रेख़्ता गागर में वो सारा अदब यूँ लगे 'अज़हर' मुझे सारा जहाँ संजीव है