सन्नाटा By Nazm << तहरीकें क़त्ल नहीं होतीं रिश्वत >> शहर के अंदर सन्नाटा है जैसे किसी मातम का मंज़र सड़कें हैं वीरान अकेली रातें हैं पुर-हौल अँधेरी लोग घरों में बंद हैं सारे सोए हुए हैं बख़्त के मारे ग़म से हैं आज़ाद हद-दर्जा बेहोश 'आसिम' मत कर शोर 'आसिम' बस ख़ामोश Share on: