सारे जज़्बों का सहर बिखर गया है सारे रिश्तों का भरम टूट गया है मैं ने अपनी चाहत के सिवा कुछ भी नहीं देखा किसी बे-जान शय पर भी नज़र नहीं डाली तुम्हारे अंदर जीती रही हूँ तुम से बे-ख़बर हो कर अपने आप से भी बे-ख़बर हो कर मैं ने तुम में सिर्फ़ अपने आप को देखा ये सारा इश्क़ मेरा ख़ुद अपनी ही ज़ात से था तुम अजनबी थे मेरे लिए अजनबी ही रहे मैं अजनबी थी अपने से अजनबी न रही अपने आप को पा कर ज़हर अपना पी रही हूँ जी रही हूँ