फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना फिर रंग पे है शोला-ए-रुख़्सार-ए-हक़ीक़त पैग़ाम-ए-अजल दावत-ए-दीदार-ए-हक़ीक़त ऐ दीदा-ए-बीना अब वक़्त है दीदार का दम है कि नहीं है अब क़ातिल-ए-जाँ चारा-गर-ए-कुल्फ़त-ए-ग़म है गुलज़ार-ए-इरम परतव-ए-सहरा-ए-अदम है पिंदार-ए-जुनूँ हौसला-ए-राह-ए-अदम है कि नहीं है फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना, ऐ दीदा-ए-बीना फिर दिल को मुसफ़्फ़ा करो, इस लौह पे शायद माबैन-ए-मन-ओ-तू नया पैमाँ कोई उतरे अब रस्म-ए-सितम हिकमत-ए-ख़ासान-ए-ज़मीं है ताईद-ए-सितम मस्लहत-ए-मुफ़्ती-ए-दीं है अब सदियों के इक़रार-ए-इताअत को बदलने लाज़िम है कि इंकार का फ़रमाँ कोई उतरे