साथी से By Nazm << विसालिया सच्चा झूट >> मैं ख़ुद ही अपनी बहार से रूठने लगूँ गर तो तुम मुझे रूठने न देना जो वार लम्हे का हो वो सहना ये सोच लेना कि एक लम्हा गुरेज़ का कैसे मोहब्बतों की इक उम्र पामाल कर के गुज़र रहा है Share on: