मैं उस को पाना भी चाहूँ तो ये मेरे लिए ना-मुम्किन है वो आगे आगे तेज़-ख़िराम मैं उस के पीछे पीछे उफ़्तां ख़ेज़ाँ आवाज़ें देता शोर मचाता कब से रवाँ हूँ बर्ग-ए-ख़िज़ाँ हूँ जब मैं उकता कर रुक जाऊँगा वो भी पल भर को ठहर कर मुझ से आँखें चार करेगा फिर अपनी चाहत का इक़रार करेगा फिर मैं मुँह तोड़ के तेज़ी से घर की जानिब लौटूँगा अपने नक़्श-ए-क़दम रौंदूँगा अब वो दिल थाम के मेरे पीछे लपकता आएगा नद्दी नाले पत्थर पर्बत फाँद आ जाएगा मैं आगे आगे वो पीछे पीछे दोनों की रफ़्तार है इक जैसी फिर ये कैसे हो सकता है वो मुझ को या मैं उस को पा लूँ