मसाई के अमल में सारी सतरें काँप उठती हैं उसे तो गुम्बद-ए-तहरीर से बाहर निकलना था सबा-रफ़्तार चलना था किसी साँचे में ढलना था मगर जब सोच पर क़दग़न ख़यालों पर रहे पहरा किसी अन-देखे ग़ुर्फ़े से गिरे बिजली का इक कौंदा लब-ए-फ़रियाद कोई वा करे मुमकिन नहीं रहता मसाई के अमल में सारी सतरें काँप उठती हैं