ये रेशमी सा हसीन बंधन By Nazm << सतरें काँप उठती हैं मोहब्बत मौसमों की क़ैद से... >> ये रेशमी सा हसीन बंधन जो सब गवाहों की हाज़िरी में रक़म हुआ था ख़ुदा ही जाने कहाँ कहाँ से रफ़ू किया है ये रेशमी सा गुदाज़ बंधन ये जब भी उलझा तो ख़ारज़ारों की धज्जियों से इसे सिया है रफ़ू-गरी का हर एक टाँका गवाह इस का बचा रही हूँ ये रेशमी सा हसीन बंधन Share on: