ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यों है ज़मीन जिन के लिए बनी थी उन्ही पे आख़िर ये तंग क्यों है सभी हैं मख़्लूक़ एक तेरी तो फ़र्क़-ए-नस्ल और रंग क्यों है जो सच कहे है इसी को सूली इसी पे यलग़ार-ए-संग क्यों है ख़ुदा-ए-बर्तर ये जंग क्यों है ख़ुदा-ए-बर्तर ये जंग क्यों है