तिश्नगी कब बुझेगी सहरा की अब्र कब चाहतों के बरसेंगे कब तलक ऐ इराक़ की धरती तेरे बच्चे दवा को तरसेंगे मौत कब तक सुलाएगी आख़िर लोरियाँ दे के बे-गुनाहों को रोक रक्खेगा कब तलक कोई वक़्त की सिसकियों को आहों को ज़ुल्म का सद्द-ए-बाब कब होगा ख़त्म दौर-ए-अज़ाब कब होगा