सड़कों पे सन्नाटा है और जिन उम्रों में माएँ बेटों के सिगरेट से सुलगे कपड़ों की जेबों में कोई महकता ख़त देखें तो हँस कर वापस रख देती थीं इन उम्रों में अब माओं को जिस्मों में बारूद की बू और लाशों में सिक्के के छेद रुला देते हैं दिल पर ज़ख़्म उठाने वाली उम्र में लड़के कमरे की दीवार के घाव बंदूक़ों की तस्वीरों से ढक देने पर आमादा कैसे होते हैं फ़तवों की धारें ज़ेहनों को आख़िर कैसे कुंद करती हैं जन्नत में जो कुछ भी होगा इस दुनिया को कौन जहन्नुम कर देता है माओं की गोदों से उठ कर मौत की गोद में सोने वालो कुछ तो बोलो