सेंसर्शिप By Nazm << नींद बुलबुलों के महल >> छुपाएँगे किस तरह अहल-ए-चमन से वो रूदाद-ए-ग़म सकिनान-ए-क़फ़स की यहाँ रस्म-नामा बरी गुलिस्ताँ की हवाओं को सौंपी गई है गुल-ओ-बर्ग हैं राज़-दाँ दास्तान-ए-सितम के Share on: