तुझे ए'तिबार-ए-सहर भी है तुझे इंतिज़ार-ए-बहार भी मगर ऐ सदा-ए-उमीद-ए-दिल मिरी ज़िंदगी तो क़लील है ये शब-ए-ख़िज़ाँ है मिरे गुमाँ से अजीब-तर कोई आस-पास नहीं यहाँ कोई शक्ल हो जो दिल-आफ़रीं कोई नाम हो जो मता-ए-जाँ कोई चाँद ज़ीना-ए-अब्र से उतर आए और मुझे थाम ले कोई ख़्वाब-रू बड़ी गहरी नींद से चौंक कर मिरा नाम ले सर-ए-शाम कोई सितारा जो कोई राह-रौ किसी राह में जिसे हो फ़क़त यही आरज़ू मिरा हाथ थाम के रौशनी के किसी मदार में ले चले मिरी नींद चूम के ख़्वाब के किसी मर्ग़-ज़ार में ले चले मगर ऐ बहा-ए-उमीद-ए-दिल तिरी ज़िंदगी भी क़लील है ये ख़िज़ाँ की रात तवील है