जैसे कोई सय्याह सफ़र से लौटे जब शाम को तुम लौट के घर आओगे हर नक़्श मोहब्बत से तुम्हें देखेगा हर याद को तकता हुआ तुम पाओगे तुम बैठोगे अफ़्कार की ख़ामोशी में सोचोगे कि इस रंज से क्या हाथ आया तुम ढूँडने निकले थे मगर क्या पाया जम जाएँगी शोलों पे तुम्हारी आँखें हर शोले में इक ख़्वाब नज़र आएगा दीवारों पे परछाइयाँ लहराएँगी हर रास्ता आवाज़ों से भर जाएगा इक शहर है आबाद तुम्हारे दिल में इक शहर जो गुमनाम है ना-पैदा है इक शहर जो मानिंद-ए-शजर तन्हा है