वो शहर-ए-दोस्त भी रुख़्सत हुआ कि जिस ने सदा हमारे दिल में खिलाए थे चाहतों के गुलाब ख़ुमार बाक़ी है अब तक हमारी आँखों में हसीन लम्हों का जो उस के दम से रौशन थे तुम्हारे बा'द भी आएँगे यूँ तो सब मौसम बहुत सताएँगे लेकिन हर एक मौक़ा पर जो होते तुम तो ये काम इस तरह करते करेंगे याद तुम्हें हम कई हवालों से अजीब शख़्स था कड़वी-कसीली सुन कर भी न तेज़ बोला किसी से न वो हुआ नाराज़ सजाए रहता था होंटों पे चाहतों के गुलाब बिछड़ रहे हो तो वा'दा करो मिरे हमदम कभी जो गुज़रो इधर से तो भूल मत जाना यहीं मिलेंगे किसी मूलसरी के पेड़ तले करेंगे बातें श्रंगार-रस के दोहों की करेंगे बातें बिहारी की नायकाओं की करेंगे बातें किसी के रसीले होंटों की महकती ज़ुल्फ़ों की काजल की उस की बिंदिया की लचकती शाख़ से जिस्मों की चाँद-चेहरों की बिछड़ रहे हो तो वा'दा करो कि आओगे कभी जो गुज़रो इधर से तो भूल मत जाना तुम्हारे हिज्र के मौसम की सब्ज़ चादर को मैं अपने तन पे सजाए यहीं मिलूँगा तुम्हें