ये तुम ने क्या लिखा मैं ने तुम्हें दिल से भुला डाला तुम्हें तो याद होगा बिछड़ते वक़्त तुम ने ही कहा था अगर तुम चाहते हो ये तुम्हारे और मेरे दरमियाँ ये रिश्ता उम्र भर यूँही रहे क़ाएम तो इन लफ़्ज़ों से यूँही दोस्ती रखना कभी फ़ुर्सत मिले तो आओ और देखो में अब भी लफ़्ज़ लिखता हूँ में इन लफ़्ज़ों में जीता और मरता हूँ में इन लफ़्ज़ों में अपना ग़म कुछ इस सूरत समोता हूँ कि मेरा ग़म भी सब को अपना ग़म मालूम होता है तुम्हें फ़ुर्सत मिले तो आओ और देखो मिरी साँसों में बसने वाला इक पल भी तुम्हारे ज़िक्र से ख़ाली नहीं होता