ज़ौ-फ़िशाँ है फ़लक पे माह-ए-मुबीं चाँदनी से चमक उठी है ज़मीं हो गई है हर एक शय सीमीं ताबिश-ए-नूर का जवाब नहीं ख़ाक पर सर-बसर है बारिश-ए-नूर ता-ब-हद्द-ए-नज़र है बारिश-ए-नूर ग़र्क़ हैं नूर में जो दश्त-ओ-दमन फूल मिस्ल-ए-चराग़ हैं रौशन सहन-ए-फ़िरदौस है ज़मीन-ए-चमन गुल-फ़िशाँ है निगाह का दामन लहलहाते हैं सब्ज़-पोश दरख़्त हो गए हैं शराब-नोश दरख़्त