शोर बहता हुआ इक दरिया है कैसी मस्ती में बहे जाता है शोर कानों में बसा लगता है क्या गरजता हुआ सन्नाटा है शोर जंगल की लपकती हुई आग घर का घर पल में जला देता है शोर खूँ-ख़्वार बला है पल में सारी बस्ती को निगल जाता है शोर की आँच से अल्लाह बचाए सीसा कानों में पिघल जाता है शोर है जंग-ओ-जदल का कोहराम शोर ही अम्न का भी नारा है शोर ही नग़्मा-ए-गुल बांग-ए-अज़ाँ शोर मंदिर का भजन होता है शोर एहसास-ए-वजूद-ए-हस्ती शोर ही ज़ीस्त का सरमाया है शोर नाबूद तो हस्ती न वजूद ख़ामुशी मौत का हंगामा है शोर ही शोर 'सहर' चार तरफ़ शोर थम जाए तो सन्नाटा है