शाम हुई है सूरज डूबा रंग ज़माने का है बदला शाम सुहानी देखो आई कैसा सुहाना वक़्त है लाई दिल को लुभा लेता है कैसा चैन हमें देता है कैसा शाम का अच्छा अच्छा मंज़र दिल को लुभाने वाला मंज़र घर को चला है खेती वाला मेहनत से सब तन है काला बैल भी छोड़ा हल भी छोड़ा घर की जानिब मुँह को मोड़ा हाँका वो बैलों को अपने चला वो घर को धीमे धीमे खेत से अपने घर को सिधारा लेगा अब आराम बेचारा बैलों को खूँटों से बाँधा सामने उन के भूसा डाला बैठा ख़ुद बच्चों में जा कर कैसा ख़ुश है उस का घर भर इधर उधर से चिड़ियाँ उड़ कर आ बैठीं शाख़ों के ऊपर अब ये शब भर लेंगी बसेरा सुब्ह को फिर खेतों का फेरा झील किनारे आ कर बैठी दम लेने को हर मुर्ग़ाबी तुम भी बच्चो खेलना छोड़ो अपने अपने घर को चल दो सारा दिन राहत से गुज़रा 'जौहर' शुक्र करो ख़ालिक़ का