ज़ीस्त बे-इख़्तियार गुज़री है जूँ नसीम-ए-बहार गुज़री है दिल में बरपा क़यामतें करती निगह-ए-शर्मसार गुज़री है साग़र ओ साज़ दूर ही रखिए वर्ना यूँ भी बहार गुज़री है ज़मज़मा-संज ओ ज़रफ़िशाँ निकहत फिर सबा पर सवार गुज़री है क्या गुज़रगाह है मोहब्बत की ख़ुद-ब-ख़ुद बार बार गुज़री है इक दुर-ए-शहवार-ए-सद-बुसताँ फिर लब-ए-जूएबार गुज़री है हाए शीरीनी-ए-लब-ए-लालीं मुस्कुराती बहार गुज़री है वाए तूफ़ान-ए-सीना-ए-सीमीं दुख़्तर-ए-कोहसार गुज़री है ज़िंदगी की जमील राहों से ख़ुद अजल शर्मसार गुज़री है