लौट भी आएँ अगर अब वो शनासा लम्हे और मैं तुझ से मिलूँ भी तो दबे लफ़्ज़ों में पूछेंगे सभी किन सितारों की गुज़रगाह पे तुम पहले-पहल निकले थे कौन सी झील थी वो जिस में तुम पहले-पहल डूबे थे कौन से पेड़ थे वो जिन के सायों में मोहब्बत के शगूफ़े फूटे इतने बदले हुए हालात के दोराहे पर इन सवालों के जवाबात में कैसे दूँगा अजनबी बन के मिलूँगा तो कोई पूछ न ले ये जो आँखों में मोहब्बत का रवाँ है दरिया उस की किस मौज से रिश्ता है शनासाई का उस को डर कैसा है रुस्वाई का और अगर तुझ से न मिलने की क़सम खाऊँ तो फिर दिल की हर रग से लहू टपकेगा तन्हाई का मैं सहे जाऊँगा ये ज़ख़्म शनासाई का