लम्हा-ए-नौ अज़ीम है सोज़िश-ए-दिल है क्या बला जज़्ब-ओ-जुनूँ भी कुछ नहीं साँझ समाज हेच हैं रिश्ता-ए-ख़ूँ भी कुछ नहीं हसरत व आरज़ू की नय बंदिश व बस्तगी की लय दमदमा-ए-क़दीम है अहद-ए-कुहन गुज़र गया लम्हा-ए-नौ अज़ीम है आज का सेहर बे-बदल आज की लौ अज़ीम है इत्र की रूह में बसी अस्र के रूप में रची फूटती पौ अज़ीम है ये तग-ओ-दौ अज़ीम है बहर-ए-जदीद औज मौज इस में गुहर हैं मौज मौज सत्ह-ब-सत्ह सब सदफ़ नूर की रौ अज़ीम है ताज़ा तरीन ये जहाँ ताज़ा नुजूम व आसमाँ उन की झलक जुदा जुदा उन का जिलौ अज़ीम है और है इस की ताब-ओ-तब और है चाल और छब जो ख़द-ओ-ख़ाल हों सो हों आइना तो अज़ीम है लम्हा-ए-नौ अज़ीम है इस में रियासतों का धन सारे नशात सब मेहन ऐश का दिल-ओ-बदन ग़ारत-ए-ज़िंदगी का फ़न एक बटन का मरहला