हल्क़ा-ए-फ़िक्र-ओ-सुख़न ने मुझे इज़्ज़त बख़्शी या'नी मेहमान ख़ुसूसी की फ़ज़ीलत बख़्शी मसनद-ए-आली पे ला कर जो बिठाया मुझ को क़द-ए-कोताह को इस तौर से रिफ़अत बख़्शी फ़ाएदा ये भी हुआ आज की इस महफ़िल में एक दूजे से मुलाक़ात की सूरत बख़्शी क़ाबिल-ए-इज़्ज़त-ओ-तकरीम ख़्वातीन भी हैं उन के होने ने मिरी रूह को फ़रहत बख़्शी पूरा दीवान ही मौसूफ़ सुना बैठे हैं जिन को हल्क़े ने यहाँ आज निज़ामत बख़्शी तीस बत्तीस से न थे कम यहाँ शाइ'र इमशब सब को सुनने की ख़ुदा ने मुझे हिम्मत बख़्शी कुछ तरन्नुम से सुनाने पे मुसिर थे ग़ज़लें तहत में कुछ ने सुनाएँ ये रिआ'यत बख़्शी दीदनी शाइ'र-ओ-सामे' की है सूरत इस दम भूक ने सारे ही चेहरों को नक़ाहत बख़्शी सद्र-ए-महफ़िल का हूँ मम्नून कि इस महफ़िल में बात अपनी भी कहूँ मुझ को इजाज़त बख़्शी हम ने माना का अभी आप को भी सुनना है मसनद-ए-आली को हज़रत ने जो ज़ीनत बख़्शी आप तशरीफ़ यहाँ लाए यही काफ़ी है किस क़दर आप ने हम सब को है इज़्ज़त बख़्शी खाना खुलने का ही एलान अगर फ़रमा दें हम ये समझेंगे कि तक़रीर-ए-सदारत बख़्शी