मेरे घर में तू जो ऐ नूर-ए-नज़र पैदा हुआ ख़ुश-नसीबी है तिरी शाइ'र के घर पैदा हुआ तेरी बहनें और भाई सब के सब हैं ना-बकार एक लश्कर गो कि तुझ से पेशतर पैदा हुआ ज़ौक़-ए-शेर-ओ-शाइरी बिल्कुल किसी में भी नहीं इन में से हर एक बस जैसे सिफ़र पैदा हुआ बाप के नक़्श-ए-क़दम पर तू चलेगा है यक़ीं मेरे जैसा दीदा-वर बार-ए-दिगर पैदा हुआ लोग तेरी शाइ'री सुन कर कहेंगे बरमला 'मीर' फिर पैदा हुआ है फिर 'जिगर' पैदा हुआ चाहते तो थे मिरे अग़्यार तू पैदा न हो फिर भी ये हिम्मत है तेरी तू अगर पैदा हुआ मैं बड़ा हैरान था और सोचता था बार बार किस तरह ये साहब-ह-इल्म-ओ-हुनर पैदा हुआ आख़िरश उक़्दा ये खोला माँ ने तेरी एक दिन क्या जतन करने पे ये जान-ए-पिदर पैदा हुआ पी गई थी घोल कर 'आज़ाद' की आब-ए-हयात तब कहीं घर में मिरे तुझ सा पिसर पैदा हुआ