दैर ओ काबा का मैं नहीं क़ाएल दैर ओ काबा को आस्ताँ न बना मुझ में तू रूह-ए-सरमदी मत फूँक रौनक़-ए-बज़्म-ए-आरिफ़ाँ न बना दश्त-ए-ज़ुल्मात में भटकने दे मेरी राहों को कहकशाँ न बना इशरत-ए-जहल-ओ-तीरगी मत छीन महरम-ए-राज़-ए-दो-जहाँ न बना बिजलियों से जहाँ न हो चश्मक उस गुलिस्ताँ में आशियाँ न बना ख़ार-ए-चश्म-ए-हरीफ़ रहने दे हिर्ज़-ए-बाज़ू-ए-दोस्ताँ न बना मेरी ख़ुद-बीनियाँ न ले मुझ से जल्वा-अफ़रोज़-ए-महविशाँ न बना दिल-ए-सद-पारा-ए-हवादिस को तख़्ता-ए-मश्क़-ए-गुल-रुख़ाँ न बना मेरी ख़ुद्दारियों का ख़ून न कर मुतरिब-ए-बज़्म-ए-दिल-बराँ न बना माह-ओ-अंजुम से मुझ को क्या निस्बत मुझ को इन का मिज़ाज-दाँ न बना जिस को अपनी ख़बर नहीं रहती उस को सालार-ए-कारवाँ न बना मेरी जानिब निगाह-ए-लुत्फ़ न कर ग़म को इस दर्जा कामराँ न बना इस ज़मीं को ज़मीं ही रहने दे इस ज़मीं को तू आसमाँ न बना मेरी हस्ती नयाज़-ओ-शौक़ सही इस को उनवान-ए-दास्ताँ न बना राज़ तेरा छपा नहीं सकता तू मुझे अपना राज़-दाँ न बना