शिकस्त-ए-ए'तिबार By Nazm << तिरी आवाज़ सुन कर नज़्म >> वही चश्म-ए-नम मुझे खोजती वही होंट मुझ को पुकारते वही हाथ मेरे तलब-ज़दा वही चाँद माथा वो रौशनी वही सहर का रसा लम्स भी तुझे शब के साथ था लौटना मगर आह दिल का ये फ़ैसला मिरा ए'तिमाद अलम-ज़दा ऐ मिरे अज़ीम तिलिस्म-गर मुझे इज़्न दे दे रिहाई का Share on: