सोच रही हूँ बचपन का ख़ुश-रंग ज़माना बीते कितनी देर हुई है कोई पुराना नाता दिल से टूटे कितनी देर हुई है मुझ को अपने आप से बिछड़े कितनी देर हुई है लेकिन एक खिलौनों की अलमारी कुछ रंगीन और उलझे धागे सहन में भीगती नन्ही चिड़िया नहर किनारे घास की नरमी आम के पेड़ की ठंडी छाया लीमूँ के पौदे की ख़ुशबू आख़िर कब दामन छोड़ेगी