शब-ए-वस्ल क्यों हैं रुलाने की बातें करो कुछ तो हँसने हँसाने की बातें दिल-ए-ना-तवाँ को मनाने की बातें नहीं हैं नहीं हाथ आने की बातें मुनासिब है कुछ इंतिज़ाम-ए-मसर्रत पिलाओ पिलाओ शराब-ए-मोहब्बत तुम्ही कह दो कुछ हद है ज़ुल्म-ओ-जफ़ा की वफ़ा की तरह सारी दुनिया है शाकी कभी ये अदा की कभी वो अदा की रही शक्ल अबतर दिल-ए-मुब्तला की नहीं हैं नहीं हैं मोहब्बत की बातें हक़ीक़त में ये हैं अदावत की बातें